एक व्यक्ति के लिए धर्म का स्वरूप : केवल पूजा नहीं, जीवन जीने की कला
✒️ लेखक : R. F. Tembhre Views: 680 प्रकाशन: 10 Oct 2025    अद्यतन: अद्यतन नहीं किया गया

एक व्यक्ति के लिए धर्म का स्वरूप : केवल पूजा नहीं, जीवन जीने की कला

एक व्यक्ति के लिए धर्म का स्वरूप : केवल पूजा नहीं, जीवन जीने की कला

धर्म, जिसे अक्सर लोग पूजा-पाठ, प्रार्थना या कर्मकांड तक सीमित मानते हैं, वास्तव में एक व्यक्ति के जीवन का आधार, आचार-विचार की संहिता और नैतिक मार्गदर्शन का स्रोत होता है। किसी भी व्यक्ति के लिए धर्म का सच्चा स्वरूप उसके आंतरिक 'स्व' (Self) को बाहरी दुनिया से जोड़ने वाले पुल या कड़ी जैसा होना चाहिए। धर्म एक ऐसी व्यवस्था है जो व्यक्ति को सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक रूप से उन्नत और जगत कल्याण कर सकने योग्य बनाती है।

धर्म की मौलिक परिभाषा और उसका व्यक्तिगत आयाम

भारतीय दर्शन में, 'धर्म' शब्द संस्कृत की मूल धातु 'धृ' से बना है, जिसका अर्थ है "धारण करना"। इस प्रकार, धर्म वह है जिसे धारण किया जाए, जो व्यक्ति को सत्य, न्याय और नैतिकता के मार्ग पर अग्रसर कर कायम रखे

  • नैतिक आचरण का पालन :― एक व्यक्ति के लिए धर्म का अर्थ सबसे पहले 'सत्यनिष्ठा', 'अहिंसा', 'क्षमा' और 'करुणा' जैसे मूलभूत नैतिक मूल्यों को अपने व्यवहार में उतारना है। यह सभी धर्मों का केंद्रीय विषय है।
  • कर्तव्यों का निर्वहन (स्वधर्म) :― धर्म का स्वरूप व्यक्ति के जीवन में उसकी भूमिकाओं (जैसे पुत्र, पिता, नागरिक, कर्मचारी) के प्रति उसके कर्तव्यों को ईमानदारी से पूरा करने में निहित है। यही एक व्यक्ति का स्वधर्म कहलाता है।
  • विवेक और विचार की स्वतंत्रता :― सच्चा धर्म व्यक्ति को अंधविश्वास से दूर रखता है और उसे अपने विवेक का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जैसा कि बुद्ध ने और उपनिषदों ने जनमानस को सिखाया है।

धर्म और आध्यात्मिकता का संबंध

व्यक्तिगत धर्म का स्वरूप केवल सामाजिक नियमों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिकता से भी गहराई से जुड़ा है।इससे सच्चे मानवीय गुणों का विकास होता है।

  • आंतरिक शांति की खोज :― धर्म व्यक्ति को ध्यान, योग या प्रार्थना के माध्यम से अपने मन को शांत करने और जीवन के गहरे अर्थों को समझने में सहायता करता है।
  • सेवा और परोपकार :― धर्म का सबसे सुंदर स्वरूप मानव सेवा में प्रकट होता है। स्वामी विवेकानंद के अनुसार, "दरिद्र नारायण की सेवा" ही सबसे बड़ा धर्म है। यह व्यक्ति को स्वार्थ से ऊपर उठाकर समष्टि (Collective) के कल्याण के लिए प्रेरित करता है।

आधुनिक संदर्भ में धर्म का व्यावहारिक स्वरूप

आधुनिक जटिलताओं के बीच, धर्म का स्वरूप और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। यह व्यक्ति को सहिष्णुता और समावेशन करने का भाव सिखाता है।

सहिष्णुता और विविधता का सम्मान :― एक उन्नत व्यक्ति के लिए धर्म का स्वरूप 'कट्टरता' या भेदभाव से मुक्त होना चाहिए। यह सिखाना चाहिए कि सभी धर्मों का अंतिम लक्ष्य एक ही है, भले ही रास्ते अलग-अलग हों। यह वसुधैव कुटुम्बकम् (विश्व एक परिवार है) के सिद्धांत को बल देता है।

लेख का सार

अंततः देखा जाये तो, एक व्यक्ति के लिए धर्म का आदर्श स्वरूप कोई कठोर परंपरा नहीं, बल्कि एक सजीव सिद्धांत है। यह वह आंतरिक अनुशासन है जो व्यक्ति को सत्य से जोड़ता है, उसे नैतिक बनाता है, सेवा के लिए प्रेरित करता है, और सहिष्णुता के साथ जीना सिखाता है। धर्म व्यक्ति को बेहतर मानव बनाने की सतत प्रक्रिया है, जिसका लक्ष्य केवल मोक्ष नहीं, बल्कि पृथ्वी पर एक न्यायपूर्ण और शांत समाज की स्थापना भी है जिससे सम्पूर्ण चराचर जगत का कल्याण हो सके और हमारी पृथ्वी भावी पीढ़ियों के लिए एक सुन्दर वातावरण प्रदान कर सके।

आशा है, उपरोक्त जानकारी ज्ञानवर्धक लगी होगी।
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