ब्रह्मांड और जीवात्मा का संबंध : भारतीय दर्शन में एक गहन विश्लेषण
✒️ लेखक : R. F. Tembhre Views: 1,111 प्रकाशन: 02 Oct 2025    अद्यतन: अद्यतन नहीं किया गया

ब्रह्मांड और जीवात्मा का संबंध : भारतीय दर्शन में एक गहन विश्लेषण

ब्रह्मांड एवं जीवात्मा का संबंध भारतीय दर्शन, विशेषकर हिंदू धर्म, में बहुत गहरा और जटिल है।

ब्रह्मांड (Cosmos)

ब्रह्मांड को समग्र सृष्टि के रूप में देखा जाता है, जिसमें सभी ग्रह, तारे, आकाशगंगाएँ, और ऊर्जा शामिल हैं। यह एक विशाल, अनंत और निरंतर विकसित होने वाली सत्ता है। भारतीय दर्शन के अनुसार, ब्रह्मांड को परब्रह्म या ईश्वर की अभिव्यक्ति माना जाता है। इसे अक्सर एक चेतना या शक्ति के रूप में वर्णित किया गया है जो हर चीज में व्याप्त है। ब्रह्मांड को सृष्टि, स्थिति (रखरखाव) और लय (विनाश) के तीन चक्रीय प्रक्रियाओं से गुजरता हुआ माना जाता है, जिन्हें क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और शिव द्वारा दर्शाया गया है।

1. ब्रह्मांड (Cosmos/Universe) का अलग-अलग संदर्भ में अर्थ

ब्रह्मांड का सामान्य अर्थ ― सम्पूर्ण सृष्टि, जिसमें आकाश, पृथ्वी, ग्रह, नक्षत्र, आकाशगंगाएँ, समय, दिशा, ऊर्जा और पदार्थ सब सम्मिलित हैं।

वैदिक दृष्टि से अर्थ ― उपनिषद और वेदों में ब्रह्मांड को ब्रह्म की अभिव्यक्ति माना गया है। यह असीम, अनंत और शाश्वत है।

वैज्ञानिक दृष्टि ― आधुनिक विज्ञान इसे एक expanding universe मानता है, जिसकी उत्पत्ति बिग बैंग से हुई।

जीवात्मा (Individual Soul)

जीवात्मा वह व्यक्तिगत आत्मा है जो हर जीवित प्राणी में निवास करती है। इसे आत्मा या स्वयं का एक छोटा अंश माना जाता है। जीवात्मा अविनाशी (अजर-अमर) है, जो शरीर के जन्म और मृत्यु से प्रभावित नहीं होती। यह शरीर को एक माध्यम के रूप में उपयोग करती है ताकि वह भौतिक दुनिया में अनुभव प्राप्त कर सके। जीवात्मा का मुख्य उद्देश्य इस भौतिक संसार के बंधनों से मुक्त होकर परमात्मा (परम चेतना) से एकाकार होना है। इस मुक्ति को मोक्ष या निर्वाण कहा जाता है।

2. जीवात्मा (Individual Soul) का अलग-अलग संदर्भ में अर्थ

सामान्य अर्थ ― जीवात्मा प्रत्येक प्राणी के भीतर स्थित चेतन तत्व है, जो शरीर को जीवन देता है।

वैदिक दृष्टि ― गीता और उपनिषद के अनुसार जीवात्मा अमर, अविनाशी और अनादि है। यह शरीर बदलता है लेकिन आत्मा कभी नहीं मरती। जीवात्मा का परम लक्ष्य परमात्मा (सर्वव्यापक ब्रह्म) से मिलन है।

ब्रह्मांड और जीवात्मा का संबंध

भारतीय दर्शन में, ब्रह्मांड और जीवात्मा एक ही सत्ता के दो पहलू हैं। इसका सार अहं ब्रह्मास्मि (मैं ब्रह्म हूँ) और तत्त्वमसि (तुम वही हो) जैसे महावाक्यों में निहित है। इसका अर्थ यह है कि―

○ अद्वैत (एकता) ― दोनों मूलतः एक ही हैं। जिस तरह एक महासागर की बूंद महासागर का ही हिस्सा है, उसी तरह जीवात्मा भी परब्रह्म (ब्रह्मांड) का ही अंश है।

 ○ भ्रम (माया) ― भौतिक शरीर और दुनिया के भ्रम (माया) के कारण जीवात्मा खुद को ब्रह्मांड से अलग मानती है। यह अज्ञान ही दुःख और पुनर्जन्म का कारण बनता है।

○ मुक्ति (मोक्ष) ― जब जीवात्मा इस अज्ञान को दूर करके अपनी वास्तविक प्रकृति को पहचान लेती है, तो वह पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त होकर ब्रह्मांड या परमात्मा में विलीन हो जाती है। यह अवस्था परम शांति और आनंद की होती है।

सरल शब्दों में, ब्रह्मांड मैक्रो (बड़ा) स्तर पर है, और जीवात्मा माइक्रो (छोटा) स्तर पर है, लेकिन दोनों का मूल सार एक ही है।

सारांश - भारतीय दर्शन के अनुसार, ब्रह्मांड और जीवात्मा एक ही परम सत्ता के दो पहलू हैं। ब्रह्मांड को परब्रह्म की अभिव्यक्ति माना जाता है, जबकि जीवात्मा हर जीवित प्राणी में निवास करने वाला उसका एक अंश है। भौतिक शरीर के कारण उत्पन्न हुए भ्रम से जीवात्मा स्वयं को ब्रह्मांड से अलग मानती है। जब यह अज्ञान दूर होता है, तो जीवात्मा मोक्ष प्राप्त कर ब्रह्मांड में विलीन हो जाती है। यह लेख इस गहन संबंध को सरल शब्दों में समझाता है।

आशा है, उपरोक्त जानकारी ज्ञानवर्धक लगी होगी।
लेखक
Samajh.MyHindi

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