मृत्यु का कारण यह भी हो सकता है क्या? आध्यात्मिक विश्लेषण एवं वैज्ञानिक पहलू
✒️ लेखक : R. F. Tembhre Views: 1,054 प्रकाशन: 30 Sep 2025    अद्यतन: 02 Oct 2025

मृत्यु का कारण यह भी हो सकता है क्या? आध्यात्मिक विश्लेषण एवं वैज्ञानिक पहलू

मृत्यु क्यों होती है? जीवन के अंत का वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोण

मृत्यु होना ​बहुत ही गंभीर और दार्शनिक विषय है। मृत्यु होने के संबंध में अनेक मत हो सकते हैं। मैंने यहां मृत्यु के संबंध में अपना मत रखा है।

मृत्यु जीवन का एक अटल सत्य है, एक अंतिम पड़ाव जिसे हर जीव को पार करना होता है। यह एक ऐसा प्रश्न है जिसने सदियों से दार्शनिकों, वैज्ञानिकों और आम मनुष्यों को मोहित और विचलित किया है। मृत्यु क्यों होती है? इस प्रश्न का उत्तर विज्ञान के जटिल तंत्र से लेकर दर्शनशास्त्र के गहन विचारों तक फैला हुआ है।

जैसा कि हम जानते हैं ब्रह्मांड अनंत है। वैज्ञानिकों ने भी पता लगाया है कि इस ब्रह्मांड की कोई सीमा नहीं है। यदि हम प्रकाश की गति (स्पीड) से भी ब्रह्मांड की यात्रा करें तो भी पूरे ब्रह्मांड को खंगाल नहीं सकते हैं। लाइट को भी यात्रा (ट्रैवल) करने में समय लगता है। जैसा कि हमें ज्ञात है सूर्य से हम तक प्रकाश को पहुंचने में लगभग 8 मिनट का समय लगता है, जबकि यह तो हमारे सौरमंडल की ही बात है। फिर इस पूरे ब्रह्मांड की यात्रा करना तो असंभव ही है।

धर्म ग्रंथो में भी इस बात का वर्णन है कि इस ब्रह्मांड की संरचना ईश्वर के द्वारा हुई है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो बिगबैंग थ्योरी सामने आती है। हिंदू धर्म ग्रंथो में इस बात का वर्णन है कि एक छोटे बिंदु आकार के प्रकाश पुंज से ही ब्रह्मांड का निर्माण हुआ है। ईश्वर की महिमा को समझना हमारे बस की बात नहीं है, किंतु यह मानना ही पड़ेगा कि इस ब्रह्मांड की रचना निश्चित तौर से परम सत्ता, सर्वशक्तिमान उस ईश्वर ने ही की है।

जैसा कि हिंदू धर्म ग्रंथो में वर्णन है कि इस ब्रह्मांड में कई लोक हैं। हम मृत्यु लोक के निवासी हैं। यह पृथ्वी हमारा कोई स्थाई घर नहीं है। प्रत्येक प्राणी को एक निश्चित समयावधि के बाद इस लोक को छोड़कर परलोक को सिधारना पड़ता है।

हमने ऊपर बात की थी ट्रैवल की। तो निश्चित ही मृत्यु के बाद आत्मा को भी ट्रैवल करना पड़ता है। उसे अन्य लोकों तक जाना होता है। ब्रह्मांड अनंत है और हमें यह ज्ञात नहीं है कि कौन सा लोक कितनी दूरी पर है। हालांकि धर्म ग्रंथो में इनकी दूरियां भी वर्णित की गई हैं।

यदि हम गति की बात करें तो प्रकाश से भी तेज गति मन की गति मानी गई है। मृत्यु के बाद निश्चित तौर से आत्मा मन की गति से ट्रेवल कर सकती है या ये सकता है कि उतनी गति से यात्रा करना जिससे कम से कम समय में एक लोक से दूसरे लोक की यात्रा हो सके। जैसा कि धर्म ग्रंथो में उल्लेख है यमदूत आत्मा को ले जाने आते हैं और वे अपने साथ उसे आत्मा को मन की गति (अतिशय तीव्र गति) से यात्रा करते हुए चलते हैं। अर्थात हम कह सकते हैं कि पलक झपकते एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचना।

यदि प्राणियों की मृत्यु ही न हो तो इस लोक से अन्य लोगों की यात्रा करना संभव ही नहीं हो पाएगा, क्योंकि तीव्रतम गति से सशरीर यात्रा करना प्राणी के लिए संभव ही नहीं है। जिस वस्तु में मास (द्रव्यमान) होता है, वह बहुत अधिक रफ्तार (प्रकाश की गति) के साथ यात्रा कर ही नहीं सकती है।

यहां तक प्रकाश को भी अपनी आकाशगंगा के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचने में लाखों प्रकाश वर्ष लग जाता है तो फिर ईश्वर के द्वारा रचे हुए इस ब्रह्मांड में जिस लोक में आत्मा को जाना होता है उस लोक की यात्रा क्षणिक तो होगी नहीं। मृत्यु के बाद आत्मा निश्चित तौर से यात्रा मन की गति से कर सकने में सक्षम हो जाती होगी।

इसीलिए ईश्वर ने ऐसा विधान बनाया है, ऐसी संरचना की है कि यहां हर चीज प्रकृति के अनुसार समय में आगे की ओर ही बढ़ती रहे। हर प्राणी अपनी आयु को जी कर अन्य लोकों की यात्रा के लिए मृत्यु को प्राप्त करता है ताकि आत्मा मन की गति से अन्य लोकों की यात्रा कर सके।

यहां आप देख सकते हैं आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक दोनों पहलू जुड़े नजर आते हैं।

मृत्यु के संबंध में अन्य दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण : अर्थ और उद्देश्य

(Meaning and Purpose)

​दर्शनशास्त्र मृत्यु को केवल जैविक अंत से अधिक देखता है; यह जीवन, चेतना और समय के साथ इसके संबंध की पड़ताल करता है।

​1. प्राकृतिक आवश्यकता (Natural Necessity)

​कई दार्शनिक मानते हैं कि मृत्यु जीवन का अपरिहार्य हिस्सा है। यह प्रकृति में संतुलन बनाए रखती है, पुराने को हटाकर नए को जगह देती है। यदि जीव अमर होते, तो संसाधन जल्दी खत्म हो जाते और विकास (Evolution) रुक जाता। मृत्यु प्रजातियों के अनुकूलन (Adaptation) और परिवर्तन के लिए आवश्यक है।

​2. जीवन को महत्व देना (Giving Value to Life)

​मृत्यु की निश्चितता ही जीवन को उसका मूल्य देती है। यदि जीवन अनंत होता, तो हम शायद ही हर पल को महत्व देते। मृत्यु का डर और ज्ञान ही हमें उद्देश्य खोजने, प्रेम करने और अपने समय का सर्वोत्तम उपयोग करने के लिए प्रेरित करता है।

​3. आध्यात्मिक यात्रा (The Spiritual Journey)

​कई धर्मों और आध्यात्मिक परंपराओं में, मृत्यु को पूर्ण विराम नहीं, बल्कि परिवर्तन या संक्रमण (Transition) माना जाता है।

​यह आत्मा के शरीर छोड़ने की प्रक्रिया है।

पुनर्जन्म (Reincarnation) के सिद्धांतों के अनुसार, मृत्यु एक जीवन चक्र का अंत है और दूसरे की शुरुआत।

​कई आस्थाओं में, यह आत्मा की परमात्मा या उच्च चेतना के साथ मिलन की यात्रा है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण: जैविक समाप्ति (Biological Cessation)

​विज्ञान मृत्यु को एक जैविक प्रक्रिया की समाप्ति के रूप में देखता है, जहाँ शरीर की आवश्यक प्रणालियाँ काम करना बंद कर देती हैं। इसे मुख्य रूप से दो प्रमुख स्तरों पर समझा जा सकता है—

1. कोशिका स्तर पर अपरिहार्य क्षति (Inevitable Cellular Damage)

​प्रत्येक जीव का शरीर अरबों कोशिकाओं से बना होता है। कोशिकाएँ लगातार टूटती हैं और नई बनती हैं, लेकिन यह प्रक्रिया अनंत नहीं होती।

टेलीमोअर्स का छोटा होना (Telomere Shortening) :—

हमारी कोशिकाओं के गुणसूत्रों (chromosomes) के सिरों पर टेलीमोअर्स नामक सुरक्षात्मक कैप होती हैं। हर बार जब कोशिका विभाजित होती है, तो ये टेलीमोअर्स थोड़े छोटे हो जाते हैं। एक निश्चित सीमा के बाद, ये इतने छोटे हो जाते हैं कि कोशिका विभाजित होना बंद कर देती है या खराब होने लगती है, जिससे बुढ़ापा (Senescence) और अंगों की कार्यक्षमता में कमी आती है।

डीएनए क्षति और उत्परिवर्तन (DNA Damage and Mutation) :— 

समय के साथ, आनुवंशिक सामग्री (DNA) बाहरी कारकों (जैसे विकिरण, रसायन) और आंतरिक प्रक्रियाओं (जैसे चयापचय से उत्पन्न मुक्त कण/Free Radicals) से क्षतिग्रस्त होती रहती है। मरम्मत तंत्र (repair mechanisms) इस क्षति को पूरी तरह से ठीक नहीं कर पाते, जिससे कोशिकाएं ठीक से काम करना बंद कर देती हैं, जो रोगों और बुढ़ापे का कारण बनता है।

​2. महत्वपूर्ण अंग प्रणालियों की विफलता (Failure of Vital Organ Systems)

​वैज्ञानिक रूप से, मृत्यु तब होती है जब शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंग काम करना बंद कर देते हैं :—

हृदय गति रुकना (Cardiac Arrest) :— हृदय का रक्त पंप करना बंद कर देना, जिससे ऑक्सीजन और पोषक तत्व मस्तिष्क और अन्य अंगों तक नहीं पहुँच पाते। इसे नैदानिक मृत्यु (Clinical Death) कहा जाता है।

​श्वसन विफलता (Respiratory Failure) :— फेफड़ों का शरीर में ऑक्सीजन पहुँचाना और कार्बन डाइऑक्साइड निकालना बंद कर देना।

मस्तिष्क मृत्यु (Brain Death) :— मस्तिष्क में रक्त और ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद होने से अपरिवर्तनीय क्षति हो जाती है। मस्तिष्क सभी महत्वपूर्ण शारीरिक कार्यों का नियंत्रण केंद्र है, और इसकी गतिविधि का स्थायी रूप से रुक जाना ही कानूनी और चिकित्सा की दृष्टि से मृत्यु है।

​मृत्यु के कारण (Immediate Causes of Death)

​अधिकांश मौतें सीधे तौर पर तीन मुख्य श्रेणियों के कारण होती हैं :—

रोग (Diseases) :– जैसे कैंसर, हृदय रोग, स्ट्रोक, संक्रमण (Infections)।

दुर्घटनाएँ और चोटें (Accidents and Injuries) :– जैसे ट्रॉमा, जहर, डूबना।

बुढ़ापा (Aging) या Senescence :– अंगों का धीरे-धीरे अपनी कार्यक्षमता खो देना।

​​सारांश (Summary)

​मृत्यु क्यों होती है? धार्मिक दृष्टिकोण से हर प्राणी अपनी आयु को जी कर अन्य लोकों की यात्रा के लिए मृत्यु को प्राप्त करता है ताकि आत्मा मन की गति से अन्य लोकों की यात्रा कर सके

वैज्ञानिक रूप से, यह एक जैविक अनिवार्यता है जो टेलीमोअर के छोटे होने, डीएनए क्षति और महत्वपूर्ण अंगों की विफलता के कारण होती है। यह वह तंत्र है जिसके द्वारा शरीर, एक जटिल मशीन, अंततः टूट जाता है।

दार्शनिक रूप से, मृत्यु जीवन की रूपरेखा तैयार करती है। यह केवल एक अंत नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली प्रेरक शक्ति (Motivating Force) है जो हमें जीवन को महत्व देने, विकसित होने और अस्तित्व के गहन अर्थों पर विचार करने के लिए मजबूर करती है। मृत्यु जीवन की कहानी का अंतिम पृष्ठ है, और इसी कारण से कहानी के बाकी पन्ने इतने मायने रखते हैं।

आशा है, उपरोक्त जानकारी ज्ञानवर्धक लगी होगी।
लेखक
Samajh.MyHindi

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