हमारे किए गए कर्मों के फल इसी जन्म में कितने वर्षों के बाद मिलना प्रारंभ हो जाता है? | कर्मों का फल : समय और सिद्धांत
✒️ लेखक : R. F. Tembhre Views: 842 प्रकाशन: 05 Oct 2025    अद्यतन: अद्यतन नहीं किया गया

हमारे किए गए कर्मों के फल इसी जन्म में कितने वर्षों के बाद मिलना प्रारंभ हो जाता है? | कर्मों का फल : समय और सिद्धांत

प्रस्तावना : कर्मफल सिद्धांत का विस्तार

कर्म और उसके फल की अवधारणा भारतीय दर्शन और धर्म का केंद्रीय विषय है। यह प्रश्न कि हमारे कर्मों का फल कब मिलता है, सदियों से मनुष्य को विचलित करता रहा है। आइए इस विषय को विभिन्न दृष्टिकोणों से समझने का प्रयास करें।
सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों में से एक है कर्मफल का सिद्धांत (Law of Karma)। यह एक शाश्वत और अटल नियम है, जो बताता है कि हमारे द्वारा किए गए हर कर्म (शारीरिक, मानसिक या वाचिक क्रिया) का एक समान और विपरीत फल (परिणाम) हमें अवश्य मिलता है। यह सिद्धांत किसी ईश्वरीय दंड या पुरस्कार पर आधारित न होकर, प्रकृति के स्वतः संचालित नियम पर आधारित है।


कर्म के तीन प्रकार

शास्त्रों में कर्मों को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है, और फल मिलने का समय इन्हीं पर निर्भर करता है―

(अ) संचित कर्म (Sanchita Karma) :― यह हमारे पिछले अनेक जन्मों के संचित कर्मों का भंडार है। इसे कर्म का संचित खाता कह सकते हैं। यह हमारे सभी पिछले जन्मों और इस जन्म के उन कर्मों का विशाल संग्रह है, जिनका फल अभी भोगना बाकी है। यह एक विशाल बैंक खाते की तरह है।
परिणाम :― इनका फल मिलना संदिग्ध होता है, क्योंकि विरोधी परिस्थितियाँ या ज्ञान के द्वारा ये कर्म नष्ट भी हो सकते हैं या इनका फल अगले जन्मों के लिए सुरक्षित हो जाता है।

(आ) प्रारब्ध कर्म (Prarabdha Karma) :― संचित कर्मों में से जो भाग इस जन्म में भोगने के लिए निर्धारित है, वह प्रारब्ध कहलाता है। यह संचित कर्म का वह हिस्सा है, जिसे ईश्वर या प्रकृति ने इस जन्म में भोगने के लिए निर्धारित किया है। यह हमारे वर्तमान जीवन की नियति, जन्म, मृत्यु, सुख-दुख और प्रमुख घटनाओं को निर्धारित करता है।
परिणाम :― इस कर्म का फल हमें जन्म से लेकर मृत्यु तक भोगना ही पड़ता है।
उदाहरण :– किसी विशेष परिवार में जन्म लेना, जीवन में बड़े रोग या बड़ी सफलताएँ मिलना, जो हमारे वर्तमान क्रियमाण कर्म से सीधे जुड़ी हुई नहीं लगतीं, वे प्रारब्ध कर्म का फल होती हैं।

(इ) क्रियमाण कर्म (Kriyamana Karma) या आगामी कर्म :― यह वर्तमान जीवन में किए जा रहे कर्म हैं, जो भविष्य में फल देंगे।
ये वे कर्म हैं जो हम वर्तमान क्षण में कर रहे हैं।
परिणाम :― इनका फल अक्सर शीघ्र या हाथों-हाथ मिल जाता है।
उदाहरण :―
(क) अगर आप किसी को तुरंत गाली देते हैं, तो वह व्यक्ति तुरंत प्रतिक्रिया में आपको बुरा-भला कह सकता है। यह तुरंत फल है।
(ख) यदि आप कड़ी मेहनत से पढ़ाई करते हैं, तो परीक्षा में तुरंत अच्छे अंक प्राप्त हो सकते हैं।
(ग) आप आग में हाथ डालते हैं और तुरंत जल जाते हैं।


कर्मफल प्राप्ति का समय

कर्मों के फल इसी जन्म में कब मिलना प्रारंभ होते हैं? इस प्रश्न का सीधा उत्तर यह है कि कर्मों का फल कब मिलना प्रारंभ होगा, इसकी कोई निश्चित समय-सीमा (जैसे 1 साल, 5 साल या 10 साल) तय नहीं है। यह फल तुरंत (हाथों-हाथ), कुछ समय बाद (महीनों या वर्षों में), या अगले जन्मों में भी मिल सकता है। फल मिलने का समय मुख्य रूप से कर्म के प्रकार और उसके परिपाक काल पर निर्भर करता है।

फिरभी काफी हद तक तय किया जा सकता है कि कर्मों का फल कब मिलना प्रारंभ होता है?

तत्काल फल (द्रष्टव्य कर्म) ― कुछ कर्मों का फल तुरंत या अत्यंत शीघ्र मिलता है। उदाहरण के लिए ―
(क) यदि कोई व्यक्ति नियमित व्यायाम करता है, तो कुछ सप्ताह या महीनों में स्वास्थ्य लाभ दिखाई देता है।
(ख) कठिन परिश्रम से अध्ययन करने पर परीक्षा में सफलता मिलती है।
(ग) असत्य बोलने पर विश्वास खो जाता है।

मध्यम अवधि का फल
कुछ कर्मों का परिणाम कुछ वर्षों में प्रकट होता है ―
(क) शिक्षा में किया गया निवेश 5-10 वर्षों में करियर के रूप में फल देता है।
(ख) स्वास्थ्य की उपेक्षा कुछ वर्षों बाद रोग के रूप में सामने आती है।
(ग) रिश्तों में किया गया व्यवहार समय के साथ संबंधों की गुणवत्ता निर्धारित करता है।

दीर्घकालिक फल
शास्त्रों के अनुसार, कुछ गहन कर्मों का फल इसी जन्म के उत्तरार्ध में या अगले जन्मों में मिलता है।


विभिन्न शास्त्रीय मत

(अ) गीता का दृष्टिकोण ― भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि निष्काम कर्म करने वाला व्यक्ति कर्मफल के बंधन से मुक्त हो जाता है। कर्म का फल आसक्ति और इच्छा से जुड़ा है।

(ब) योग दर्शन ― पतंजलि के योग सूत्र में बताया गया है कि कर्माशय (कर्मों का संस्कार) वासनाओं के रूप में संचित रहता है और उचित परिस्थिति मिलने पर फल देता है।

(स) बौद्ध दर्शन ― बौद्ध धर्म में "कर्म विपाक" की अवधारणा है, जिसके अनुसार कर्म का फल तत्काल, जीवनकाल में, या भविष्य के जन्मों में मिल सकता है।


वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण

आधुनिक मनोविज्ञान भी स्वीकार करता है कि हमारे कार्य और आदतें हमारे व्यक्तित्व और जीवन को आकार देती हैं―
(1) न्यूरोप्लास्टिसिटी ― हमारे नियमित कर्म मस्तिष्क की संरचना बदलते हैं, जो लगभग 3-6 महीने में प्रभावी होने लगता है।
(2) आदत निर्माण ― मनोवैज्ञानिकों के अनुसार एक नई आदत बनने में 21 से 66 दिन लगते हैं।
(3) संचयी प्रभाव ― छोटे-छोटे कर्मों का संचयी प्रभाव वर्षों में बड़े परिवर्तन लाता है।


फल में विलम्ब क्यों होता है?

जब कोई कर्म करने के बावजूद उसका फल वर्षों बाद मिलता है, तो इसके कुछ मुख्य कारण हैं:
(1) योग और समय का सिद्धांत :― फल तभी मिलता है जब उसका योग (सही समय और परिस्थितियाँ) बनता है। जैसे एक किसान बीज बोता है, लेकिन फल पकने में कुछ महीने या वर्षों का समय लगता है। इसी प्रकार, किसी कर्म का फल देने के लिए सभी संबंधित कारक (जैसे व्यक्ति की मानसिक स्थिति, अन्य लोगों का कर्मफल, बाहरी परिस्थितियाँ) का एक साथ आना ज़रूरी होता है।
(2) कर्म की तीव्रता और गूढ़ता :― जटिल और गहन मानसिक भावना (जैसे अत्यधिक ईर्ष्या या निस्वार्थ परोपकार) से किए गए कर्म का फल बनने में अधिक समय लग सकता है, क्योंकि वे मन की गहराई में एक मजबूत संस्कार (impression) छोड़ जाते हैं, जिसका फल आने वाले वर्षों या जन्मों में परिलक्षित होता है।
(3) ईश्वरीय व्यवस्था :― सनातन धर्म में माना जाता है कि फल देने में हुई देरी जीव को अपने गलतियों को सुधारने का अवसर प्रदान करती है। कई बार परमात्मा जीव को पश्चात्ताप करने और अपने कर्मों को निष्काम (फल की आसक्ति के बिना) बनाने का पूरा जीवनकाल देते हैं।


प्रमुख कारक जो कर्मफल के समय को प्रभावित करते हैं

(1) कर्म की तीव्रता ― जितना तीव्र और गहरा कर्म होगा, उतनी जल्दी या देर से उसका फल मिल सकता है। अत्यंत पुण्य या पाप कर्म का प्रभाव शीघ्र दिखता है।
(2) मनोभाव और संकल्प ― किसी कार्य को किस भावना से किया गया, यह महत्वपूर्ण है। तीव्र भावना से किया गया कर्म शीघ्र फलदायी होता है।
(3) नियमितता और निरंतरता ― नियमित रूप से किए जाने वाले कर्मों का फल क्रमिक रूप से मिलता रहता है।
(4) परिस्थितियाँ और समय ― उचित परिस्थितियाँ और समय मिलने पर ही कर्म फलीभूत होता है।


व्यावहारिक समयरेखा

यदि हम व्यावहारिक दृष्टि से देखें तो―
0-1 वर्ष :― दैनिक आदतों और व्यवहार का प्रभाव दिखना शुरू होता है।
1-3 वर्ष :― शिक्षा, स्वास्थ्य, और व्यक्तिगत विकास में किए गए प्रयासों के परिणाम स्पष्ट होने लगते हैं।
3-7 वर्ष :― करियर, रिश्तों और जीवनशैली से संबंधित निर्णयों के गहरे परिणाम दिखते हैं।
7-21 वर्ष :― जीवन की दिशा निर्धारित करने वाले बड़े कर्मों का व्यापक प्रभाव दिखता है।
21+ वर्ष :― संचित कर्मों का समग्र प्रभाव जीवन के स्वरूप के रूप में प्रकट होता है।


गीता का निष्काम कर्मयोग

कर्मफल के सिद्धांत को समझने के लिए श्रीमद्भगवद्गीता सबसे महत्वपूर्ण है। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।"

(अध्याय 2, श्लोक 47)
अर्थ :― तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने पर है, उसके फलों पर कभी नहीं। तुम कर्मों के फल की इच्छा से प्रेरित मत हो और न ही कर्म न करने में तुम्हारी आसक्ति हो।
यह श्लोक कर्मफल के बंधन से मुक्त होने का रास्ता बताता है। यदि कोई व्यक्ति निष्काम भाव से (फल की इच्छा और अहंकार को त्यागकर) केवल अपना कर्तव्य समझकर कर्म करता है, तो उसका कर्म संचित कर्म के खाते में नहीं जुड़ता है और वह इस जन्म के कर्मफल को इसी जन्म में शून्य कर सकता है, जिससे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है।
संक्षेप में, कर्मों का फल इसी जन्म में तुरंत से लेकर पूरे जीवनकाल के दौरान कभी भी मिल सकता है, और जो कर्म इस जन्म में भोगने लायक नहीं बनते, वे अगले जन्मों में प्रारब्ध बनकर आते हैं। यह सब कर्म के प्रकार और उसके फल पकने के समय पर निर्भर करता है।


निष्कर्ष

निष्कर्ष ― कर्मफल प्राप्ति का कोई निश्चित समय नहीं है। यह कर्म की प्रकृति, तीव्रता, और परिस्थितियों पर निर्भर करता है। कुछ कर्मों का फल तुरंत मिलता है, जबकि कुछ का प्रभाव वर्षों या जन्मों बाद दिखता है।
महत्वपूर्ण यह है कि हम निष्काम भाव से सद्कर्म करते रहें और फल की चिंता में न पड़ें। जैसा बीज बोएंगे, वैसी फसल अवश्य मिलेगी - समय का प्रश्न केवल प्रतीक्षा का है।

आशा है, उपरोक्त जानकारी ज्ञानवर्धक लगी होगी।
लेखक
Samajh.MyHindi

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