विजयदशमी के 7 अनछुए रहस्य : दशहरा जिसे आप नहीं जानते
✒️ लेखक : R. F. Tembhre Views: 1,207 प्रकाशन: 02 Oct 2025    अद्यतन: 02 Oct 2025

विजयदशमी के 7 अनछुए रहस्य : दशहरा जिसे आप नहीं जानते

विजयदशमी पर्व के अनछुए पहलू

​विजयदशमी, जिसे दशहरा भी कहते हैं, बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह वह पर्व है जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने रावण का वध किया और माँ दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का संहार किया। लेकिन इस पर्व के कुछ ऐसे आयाम हैं जो अक्सर सार्वजनिक चर्चा और सामान्य ज्ञान से अछूते रह जाते हैं, और शायद ही किसी को उनके बारे में पता हो।

​१. अपराजिता पूजा का गुप्त महत्व

​दशहरे को अपराजिता पूजा के नाम से भी जाना जाता है। यह पूजा दोपहर के समय (अपराह्न काल) की जाती है। माना जाता है कि इसी समय माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था, और श्री राम ने लंका पर चढ़ाई करने के लिए प्रस्थान किया था।

अनछुआ पहलू – यह केवल शक्ति की पूजा नहीं है, बल्कि यह समय की विशिष्ट ऊर्जा का आह्वान है। इस दिन राजा-महाराजा अपने राज्य की सीमाओं के बाहर जाकर प्रतीकात्मक रूप से दिग्विजय (समस्त दिशाओं पर विजय) का संकल्प लेते थे। यह पूजा व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में अजेय बनने की प्रेरणा देती है, जहाँ आंतरिक शत्रुओं (क्रोध, लोभ, मोह) पर विजय प्राप्त करना सर्वोपरि माना जाता है। यह पूजा अक्सर घरों के बाहर शमी वृक्ष के पास की जाती थी, जो आज लगभग विलुप्त हो चुकी है।

​२. शमी वृक्ष (खेजड़ी) और अग्नि का दिव्य संबंध

​दशहरे पर शमी वृक्ष (Prosopis cineraria) की पूजा का विधान है। इसका महत्व केवल वनस्पति पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका गहरा पौराणिक और ऐतिहासिक संबंध भी है।

अनछुआ पहलू – महाभारत काल में, पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान अपने सभी अस्त्र-शस्त्र इसी शमी वृक्ष में छिपाए थे। जब वे वापस लौटे और शस्त्र निकाले, तो वह दिन विजयदशमी का था। शमी वृक्ष को अग्नि का रूप माना जाता है (अग्नि की एक उपमा भी शमी है)। प्राचीन काल में, इस दिन अग्नि स्थापन की एक गुप्त परंपरा थी जहाँ से साल भर के लिए यज्ञ की अग्नि ली जाती थी। यह दर्शाता है कि विजयदशमी केवल युद्ध की विजय नहीं, बल्कि ज्ञान, शुद्धिकरण और शक्ति के पुन:जागरण का पर्व भी है।

​३. शस्त्र पूजा का गूढ़ार्थ : ऊर्जा का शुद्धिकरण

​दशहरे के दिन शस्त्र पूजा (आयुध पूजा) की जाती है, जो अब सेना और पुलिस तक ही सीमित होकर रह गई है।

अनछुआ पहलू – प्राचीन संस्कृति में, शस्त्र पूजा केवल अस्त्रों की नहीं होती थी। यह उन सभी साधनों की पूजा थी जिनसे व्यक्ति अपनी आजीविका कमाते हैं। एक लेखक अपनी कलम को, एक कारीगर अपने औजारों को, और एक किसान अपने हल को पूजता था। यह पूजा इस विचार को पुष्ट करती थी कि जीवन में उपयोग होने वाले हर साधन में भी दैवीय शक्ति का वास है, और उस शक्ति का उपयोग हमेशा धर्म (कर्तव्य) और सत्य के मार्ग पर ही किया जाना चाहिए। यह एक वार्षिक अनुष्ठान था जिसमें कार्य के साधनों को धन्यवाद दिया जाता था, उनकी ऊर्जा को शुद्ध किया जाता था, और अगले वर्ष के लिए उन्हें पुनः सक्रिय किया जाता था।

​४. दशहरा नाम का वास्तविक अर्थ

​आम तौर पर माना जाता है कि दशहरा नाम रावण के दस सिरों के संहार से आया है। हालाँकि, संस्कृत ग्रंथों में इसका एक और, अधिक गहरा अर्थ मिलता है।

अनछुआ पहलू – दशहरा शब्द दश + हर से बना है। दश का अर्थ है दस, और हर का अर्थ है हरण करना या दूर करना। लेकिन ये दस क्या हैं? तंत्र और योग दर्शन में, ये दस दस प्रकार के पाप माने गए हैं :— काम (वासना), क्रोध, लोभ, मद (अहंकार), मोह (आकर्षण), मत्सर (ईर्ष्या), स्वार्थ, अन्याय, अमानवीयता, और हिंसा। विजयदशमी वह दिन है जब व्यक्ति इन दस आंतरिक बुराइयों को त्यागने और उन्हें अपने भीतर से हरने (दूर करने) का संकल्प लेता है। इस प्रकार, रावण के दस सिरों का जलना इन दस पापों के प्रतीकात्मक विनाश को दर्शाता है, जो पर्व के आध्यात्मिक पहलू को उजागर करता है।

​५. एक मौन परंपरा : विसर्जन और शीत ऋतु का आह्वान

​दशहरे के साथ ही शारदीय नवरात्रि का समापन होता है और मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है।

अनछुआ पहलू – यह पर्व केवल गर्मी के अंत और सर्दी के आगमन का सूचक नहीं है, बल्कि यह प्रकृति के चक्र के प्रति हमारी गहन जागरूकता को दर्शाता है। यह विसर्जन केवल मूर्ति का जल में प्रवाह नहीं, बल्कि देवी शक्ति को वापस ऊर्ध्व जगत (सूक्ष्म संसार) में भेजने का एक धार्मिक विज्ञान है, ताकि प्रकृति का संतुलन बना रहे। दशहरे के बाद के कुछ दिन (खासकर कोजागरी पूर्णिमा तक) को शांति और संक्रमण काल माना जाता है, जब लोग बाहरी गतिविधियों को कम करके आंतरिक चिंतन पर ध्यान केंद्रित करते थे ताकि आगामी शीतकाल की ऊर्जा को ग्रहण कर सकें। यह एक प्रकार का मौन आध्यात्मिक तैयारी का समय था।

​ये अनछुए पहलू बताते हैं कि विजयदशमी केवल एक ऐतिहासिक या धार्मिक घटना का उत्सव नहीं है, बल्कि यह एक कालखंड है जिसमें प्रकृति, अध्यात्म, कर्म और व्यक्तिगत शुद्धि का गहन दर्शन समाया हुआ है।

आशा है, उपरोक्त जानकारी ज्ञानवर्धक लगी होगी।
लेखक
Samajh.MyHindi

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