नरक चतुर्दशी (छोटी दीपावली) : महात्म्य, पूजा विधान और 14 दीपकों का रहस्य
✒️ लेखक : R. F. Tembhre Views: 892 प्रकाशन: 19 Oct 2025    अद्यतन: अद्यतन नहीं किया गया

नरक चतुर्दशी (छोटी दीपावली) : महात्म्य, पूजा विधान और 14 दीपकों का रहस्य

नरक चतुर्दशी (छोटी दीपावली) : महात्म्य एवं पूजा विधान



नरक चौदस अर्थात छोटी दीपावली का क्या महात्म्य है; इस दिन पूजा का क्या विधान है?


नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दीपावली, रूप चौदस और काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। यह त्योहार दीपावली के मुख्य पर्व से ठीक एक दिन पहले आता है और इसका अपना विशेष आध्यात्मिक, पौराणिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। इस दिन को अंधकार के विनाश और प्रकाश के आविर्भाव का प्रतीक दिवस कहा जाता है।


नरक चतुर्दशी का महात्म्य (Importance of Narak Chaturdashi)

1. नरकासुर पर विजय :–

  • इस पर्व का सबसे बड़ा महात्म्य यह है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी राक्षस नरकासुर का वध किया था।
  • नरकासुर ने अपनी दुष्ट शक्ति से 16,000 कन्याओं को बंदी बना रखा था। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें मुक्त कर उनका गौरव पुनः स्थापित किया।
  • यह विजय केवल एक युद्ध की कथा नहीं, बल्कि असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की, और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है।
  • इस घटना के माध्यम से यह संदेश मिलता है कि जब मानवता पर अन्याय और अधर्म का अंधकार छा जाता है, तब ईश्वरीय शक्ति अवतार लेकर धर्म की पुनः स्थापना करती है।

2. यमराज की पूजा और अकाल मृत्यु से मुक्ति :–

  • इस दिन यम देवता (मृत्यु के अधिपति) की विशेष पूजा का विधान है।
  • मान्यता है कि संध्या के समय घर के बाहर यमराज के निमित्त दीपदान करने से व्यक्ति अकाल मृत्यु के भय से मुक्त होता है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
  • यह दीपक न केवल बाहरी अंधकार को मिटाता है, बल्कि पाप, भय और नकारात्मकता के भी नरक से मुक्ति का प्रतीक है।
  • शास्त्रों में कहा गया है —

    "त्रयोदश्यां दीपदानं यमराजं प्रसादयेत्।"

    भावार्थ — इस दिन का दीपदान यमराज को प्रसन्न कर दीर्घायु और कल्याण का वरदान देता है।

3. रूप चौदस (सौंदर्य की प्राप्ति) :–

  • एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर-वध से पूर्व अपने शरीर पर सुगंधित लेप लगाया था।
  • तभी से यह दिन रूप चौदस के रूप में प्रसिद्ध हुआ। इस दिन सूर्योदय से पूर्व अभ्यंग स्नान कर शरीर पर उबटन लगाने की परंपरा है।
  • इस स्नान से न केवल शरीर में सौंदर्य और तेज की वृद्धि होती है, बल्कि मन भी शुद्ध और प्रसन्न होता है।
  • यह अनुष्ठान व्यक्ति को रोगों से मुक्त कर आंतरिक और बाह्य रूप से निर्मल बनाता है।

4. हनुमान जी और मां काली की पूजा :–

  • देश के विभिन्न भागों में इस दिन की पूजा परंपराएँ भिन्न हैं।
  • कुछ स्थानों पर इस दिन हनुमान जयंती के रूप में हनुमान जी की आराधना की जाती है, क्योंकि हनुमान जी शक्ति, साहस और निष्ठा के प्रतीक हैं।
  • वहीं बंगाल और पूर्वी भारत के अनेक भागों में इसे काली चौदस कहा जाता है।
  • इस दिन देवी महाकाली की पूजा कर व्यक्ति अविद्या, भय और नकारात्मक शक्तियों के नाश की कामना करता है।
  • मां काली का यह रूप संसार के समस्त अंधकार को भस्म कर ज्ञान के प्रकाश का प्रसार करती हैं।

नरक चतुर्दशी पूजा का विधान (Puja Vidhan of Narak Chaturdashi)

नरक चतुर्दशी के दिन दो प्रमुख विधान माने गए हैं — अभ्यंग स्नान और यम दीपक दान।
इन दोनों का उद्देश्य है — शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि तथा जीवन में शुभता का आह्वान।


1. अभ्यंग स्नान (सूर्योदय से पूर्व) :–

  • उठना और तैयारी :– इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठना अत्यंत शुभ माना गया है, क्योंकि यह काल देवत्व के जागरण का समय है।
  • उबटन/तेल मालिश :– शरीर पर तिल का तेल, बेसन, हल्दी, चंदन और केसर से बना उबटन लगाकर मालिश करें। यह शरीर से न केवल मलिनता को दूर करता है, बल्कि आत्मिक सौंदर्य भी प्रदान करता है।
  • स्नान :– इसके बाद पवित्र जल से स्नान करें। माना जाता है कि इस स्नान से व्यक्ति को पाप-मुक्ति, आरोग्य और सौंदर्य की प्राप्ति होती है तथा नरक की यातनाओं से बचाव होता है।

2. पूजा विधि (दिन के समय) :–

  • देवताओं की पूजा :– स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और घर के मंदिर में दीप जलाकर भगवान कृष्ण, गणेश, शिव, दुर्गा, विष्णु, सूर्य एवं हनुमान जी की पूजा करें।
  • अर्घ्य और भोग :– धूप, दीप, पुष्प और नैवेद्य अर्पित करें।
  • हनुमान चालीसा का पाठ तथा श्रीकृष्ण के जयघोष से वातावरण पवित्र होता है। यह दिन ध्यान, भक्ति और आत्मशुद्धि का दिन माना गया है।

3. यम दीपक दान (संध्या के समय) :–

  • दीपक का चयन :– संध्या के समय मिट्टी या गेहूं के आटे से बना चौमुखी दीपक लें।
  • सामग्री :– उसमें सरसों का तेल भरें और रुई की चार बत्तियाँ लगाएँ, जो चारों दिशाओं में प्रकाश फैलाएँ।
  • दीपक जलाना :– घर के मुख्य द्वार के बाहर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके दीपक रखें — यही दिशा यमराज की मानी जाती है।
  • मंत्र और भावना :– दीपक जलाते समय यमराज से परिवार के कल्याण और दीर्घायु की प्रार्थना करें।
  • कहा गया है —

    "मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भयदेन च।
    त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति॥"

    भावार्थ — "हे यमराज! इस दीपदान से आप प्रसन्न हों और हमारे परिवार को भय एवं अकाल मृत्यु से रक्षा प्रदान करें।"
  • अन्य दीपक :– यम दीपक के अतिरिक्त, इस दिन 14 दीपक जलाने की परंपरा है। इन्हें घर के प्रमुख स्थलों — मुख्य द्वार, तुलसी, रसोई, आँगन और छत पर रखा जाता है। यह 14 दीपक 14 लोकों में प्रकाश फैलाने वाले 14 सूर्यों का प्रतीक माने गए हैं।

🌼 निष्कर्ष

नरक चतुर्दशी का पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन के अंधकार को मिटाकर आत्मा के प्रकाश को प्रज्वलित करने का उत्सव है।
यह दिन हमें यह संदेश देता है कि नरक से मुक्ति केवल बाह्य पूजा से नहीं, बल्कि अंतर्मन के शुद्ध भाव और सच्चे कर्मों से संभव है।
अतः इस दिन का दीपक केवल मिट्टी का नहीं, बल्कि आत्मा का दीप बनाकर जलाएँ — ताकि भीतर का अंधकार सदा-सदा के लिए मिट जाए और जीवन में दिव्यता का उजास फैल जाए।


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आशा है, उपरोक्त जानकारी ज्ञानवर्धक लगी होगी।
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