गोवर्धन पूजा (अन्नकूट महोत्सव) - प्रकृति और आध्यात्म का अनूठा संगम
✒️ लेखक : R. F. Tembhre Views: 624 प्रकाशन: 21 Oct 2025    अद्यतन: अद्यतन नहीं किया गया

गोवर्धन पूजा (अन्नकूट महोत्सव) - प्रकृति और आध्यात्म का अनूठा संगम


गोवर्धन पूजा (अन्नकूट महोत्सव) - प्रकृति और आध्यात्म का अनूठा संगम


दिवाली के अगले दिन, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को 'गोवर्धन पूजा' का पावन पर्व मनाया जाता है। इसे अन्नकूट महोत्सव और कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में पड़वा के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व भारतीय संस्कृति में प्रकृति और ब्रह्मांड के प्रति कृतज्ञता, पशु-धन के महत्व और भगवान श्रीकृष्ण के विराट स्वरूप को समर्पित है।

गोवर्धन पूजा (अन्नकूट) : धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व

प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का पर्व

गोवर्धन पूजा मुख्यतः दो प्रमुख विचारों का प्रतिनिधित्व करती है :―


1. श्री कृष्ण द्वारा इंद्र के अहंकार का मर्दन

● धार्मिक गाथा :– पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वापर युग में ब्रजवासी इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए वर्षा की पूजा करते थे। भगवान श्री कृष्ण ने यह देखकर ब्रजवासियों को समझाया कि वे इंद्र की नहीं, बल्कि गोवर्धन पर्वत की पूजा करें, क्योंकि वही गौ-धन के लिए घास, जल और वर्षा का आधार है।

● विराट स्वरूप :– इंद्र के क्रोधित होने पर उन्होंने मूसलाधार वर्षा की, जिससे ब्रज में हाहाकार मच गया। तब श्री कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों और पशुओं को आश्रय दिया। सात दिनों तक पर्वत को धारण करने के बाद इंद्र का अहंकार टूटा और उन्होंने क्षमा माँगी। यह विजयदशमी की कथा की तरह सत्य पर असत्य की विजय को दर्शाता है।

● आध्यात्मिक सार: यह घटना इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य को अहंकार और अंधविश्वास से ऊपर उठकर प्रकृति और अपने कर्मों (गौ-धन, कृषि) के सच्चे आधार की पूजा करनी चाहिए। श्री कृष्ण ने यह सिद्ध किया कि ईश्वरीय शक्ति सदैव अपने भक्तों और धर्म की रक्षा करती है। जब मन विचलित हो, तो भगवान पर विश्वास ही एकमात्र सहारा है।


2. अन्नकूट महोत्सव

● प्रथा :– गोवर्धन पूजा के दिन विभिन्न प्रकार के अनाज, दालों और सब्जियों को मिलाकर 'अन्नकूट' नामक विशेष भोग बनाया जाता है। यह भोग गोवर्धन पर्वत के प्रतीक रूप में बनाए गए गोबर के टीले को अर्पित किया जाता है। गोबर का प्रयोग यहाँ कृषि जीवन की पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक है।

● महत्व :– यह पर्व यह याद दिलाता है कि हमारा जीवन अन्न पर ही आधारित है। अन्नकूट, वर्ष भर हुई फसल के लिए धरती माता और भगवान का धन्यवाद करने का तरीका है। यह एक सामुदायिक भोज भी होता है, जहाँ सभी मिलकर प्रसाद ग्रहण करते हैं, जो सामाजिक एकता और सद्भाव को बढ़ाता है। इस भोग को मंदिरों में भगवान को अर्पित करने के बाद भक्तों में वितरित किया जाता है। यह धनतेरस के बाद भोग की परंपरा को आगे बढ़ाता है।


पशु-धन का सम्मान (गौ पूजा)

गोवर्धन पूजा में गौ माता (गाय) की विशेष पूजा का विधान है।

● महत्व :– गाय को भारतीय संस्कृति में माता का दर्जा प्राप्त है। वेदों में गौ-सेवा को अत्यंत पुण्यकारी बताया गया है। गोवर्धन पूजा के दिन गायों को सजाया जाता है, उनकी पूजा की जाती है और उन्हें विभिन्न प्रकार के व्यंजन खिलाए जाते हैं।

● आध्यात्मिक सार :– यह परंपरा हमें सिखाती है कि हमारे जीवन में पशु-धन का कितना महत्व है, विशेषकर गाय का, जो दूध, दही और कृषि में सहायक होती है। गौ-सेवा से ही हमें गोवर्धन धारी श्री कृष्ण का आशीर्वाद और कर्मों का फल प्राप्त होता है।


व्यावहारिक एवं सांस्कृतिक पक्ष

● बलि प्रतिपदा :– गोवर्धन पूजा को 'बलि प्रतिपदा' भी कहते हैं। इस दिन राजा बलि द्वारा दान में मांगे गए तीन पग भूमि का भी स्मरण किया जाता है। यह पर्व दान-धर्म और उदारता के महत्व को भी दर्शाता है।

● सफलता का सूत्र :– यह दिन किसानों और व्यापारियों के लिए नए वर्ष का प्रारंभ भी माना जाता है। यह दिन कर्म, कर्तव्य और प्रकृति के साथ समन्वय स्थापित करने की प्रेरणा देता है। जो एक विद्यार्थी को उसके जीवन में चाहिए।

● क्षेत्रीय भिन्नताएँ :– भारत के विभिन्न हिस्सों में इसे अलग-अलग तरह से मनाया जाता है; जैसे महाराष्ट्र में यह 'बलि प्रतिपदा' के रूप में नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत का अधिक प्रतीक है, और ग्रामीण क्षेत्रों में पशुओं को सजाने की विशिष्ट वास्तु-परंपराएँ भी जुड़ी हैं।


वर्तमान प्रासंगिकता और संदेश

आज के समय में जब जलवायु परिवर्तन (Climate Change) एक बड़ी समस्या है, गोवर्धन पूजा प्रकृति के संरक्षण और पारिस्थितिकी संतुलन (Ecological Balance) के महत्व को समझने का एक अवसर देती है। यह हमें यह याद दिलाता है कि हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों की खरीदारी और उनका दोहन अत्यधिक नहीं करना चाहिए। इस पर्व का संदेश है कि हमें अपने जीवन के सभी पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए, नहीं तो यह मृत्यु का कारण भी बन सकता है।


निष्कर्ष

इस प्रकार, गोवर्धन पूजा या अन्नकूट महोत्सव केवल एक धार्मिक अनुष्ठान और पूजा विधान नहीं है, बल्कि यह प्रकृति के सम्मान, अहंकार पर भक्ति की विजय, और अन्न तथा पशु-धन के प्रति हमारी कृतज्ञता को व्यक्त करने वाला एक गहरा आध्यात्मिक पर्व है। यह हमारे भीतर शुभ विचारों और सेवा के भाव को जागृत करता है, जिसकी सीख हमें महर्षि वाल्मीकि जयंती से भी मिलती है। यह हमें जीवन में दीपक जलाने के वैज्ञानिक कारण की तरह, ज्ञान के प्रकाश को फैलाने की प्रेरणा देता है।


आशा है, उपरोक्त जानकारी ज्ञानवर्धक लगी होगी।
लेखक
Samajh.MyHindi

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